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-जम्बूस्वामी चरित्र
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भूमि निरख कर वनकी ओर चल पड़े। ईस्थि शुद्धिसे चल करके धीरे २ जंबू मुनि वनमें श्री सौधर्माचार्य निष्ट माये। महान् । तेजस्वी जम्बू मुनिको एक निर्वाण लाभकी ही भावना थी, इसीलिये तपकी सिद्धि करना चाहते थे।
कुछ सालके पीछे सौधर्म भाचार्यको स्वाभाविक केवलज्ञानका काम होगया । अनंत स्वभावधारी सर्वज्ञ के वलीके चरणों में रहकर जंबूस्वामी महामुनिने कठिन कठिन तपका साधन किया।
जम्बूस्वामीका तप । स्वामी बारह प्रकारका तप करने लगे। आत्माकी विशुद्धिके लिये एक दो मादि दिनोंकी संख्यासे उपवास करते थे। शांतभाव धारी एक ग्रास दो ग्रास मादि लेबर भी महान् भवमोदर्य ता करते -थे । लोभ रहित स्वामी यथा अवसर मिक्षाको जाते हुए घरोंकी . •संख्या कर लेते थे। इसतरह वृत्तिसंख्यान तीसरा तप साधन करते थे।
इन्द्रियोंको जीतने के लिये व काम विकारकी शांति के लिये बस त्याग नामके चौथे तपको करते थे। आत्मवशी जब मुनिराज -वन पर्वत भादि शून्य स्थानों में बैठकर विविक्त शय्यासन नामका यांचमा तप किया करते थे। महान् उपसर्गको जीतने के लिये शस्त्रके -समान कायक्लेश नामके छठे तपको करते थे। श्री जंबूस्वामी परम धैर्यके एक महान् पद थे, महान् वीर्यघारी थे, छः प्रकार के बाहरी सपको सहजमें ही साधन करते थे। इसीतरह स्वामीने छः प्रकारका मतरङ्ग तप साधन किया।
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