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जम्बूस्वामी चरित्र'
अपनी स्त्रीसे सर्व हाल कहा कि पुण्यके उदयसे एक रत्नोंका पिटारा मुझे मिल गया। मैंने उसे यत्नपूर्वक गाड़ दिया है। हे प्रिये !: यह बात सच है, मैं झूठ नहीं कहता हूं ।
इस बात को सुनकर स्त्रीको आश्चर्य हुआ, तो भी हर्षसे फूलगईं । हे भद्र! बहुत अच्छा हुमा, तुम चिरकालतक नीओ | मेरी सलाह और मानो । जो एक साया तुमने एकत्र किया है उसको भी उस रत्नमांडमें कुशलतासे घर दो। हम तुम दोनों अपना नित्य कर्म बराबर करते रहें । मोहके कारण स्त्रीके वचनोंको. दरिद्रीने मान लिया कि तूने ठीक कहा -दरिद्रीने वैसा ही किया । दोनों ही जने बनसे काष्ठ ले जाते थे और विक्रय करके पेट भरते थे । कुछ दिनोंके बाद रत्नभांडका स्वामी पीछे उसी वनमें खाया । अपने रत्नभांडको जहां रक्खा था वहां न पाकर इधर उधर भूमि खोदकर ढूंढने लगा | बहुत देरके परिश्रमके बाद पुण्यके योगसे उसको वह रत्न पिटारा मिल गया । उसको लेकर वह आनन्दसे अपने घर चला गया । पुण्यके बलसे चंचला लक्ष्मी गई हुई भी सुखसे मिल जाती है । उस दरिद्रीने एक घड़े के भीतर रत्न पिटारी रखकर रुपया रख दिया था। एक दिन वह वहां भाकर खोदता. है तो घड़ेको खाली पाता है । रत्न पिटारा भी गया व एक रुपया भी गया । वह मूर्ख हावभाव करके सिरको पीट पीटकर रोने लगा ।' हा ! रत्न पिटारे के साथ मेरा पहला संचय किया हुआ रुपया भी चला गया । हा 1 पापके उदयसे मैं ठगा गया । मैंने प्राप्त धनको १५७