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मम्बूस्वामी चरित्र
तब युबान बंदरने उसका पीछा किया। जब वह बहुत दूर निकल -गया तब युवान बंदर लौट आया। वृद्ध बंदरको बहुत प्यास लगी। वह पानी पीनेको कीच सहित पानीमें घुसा। मैले पानीको पी लिया। परन्तु कीचड़में ऐसा फंस गया कि निकल न सका । मुर्ख विषयवासनासे आतुर होता हुमा मर गया। हे प्रिये ! मैं इस बंदरके समान इस संसारमें विषयों के भीतर यदि फंस जाऊं तो मुझे कौन उद्धार करेगा ? जंबूस्वामीके इस उत्तरके बलसे कनकश्री मुरझा गई, तब कथा कहने में चतुर तीसरी विनयश्री बोली
विनयश्रीकी कथा। एक कोई दरिद्री पुरुष था, जिसका नाम संख था। वह -रोज सबेरे वनमें लकड़ी काटने जाया करता था। ईंधन लाकर विक्रय करके बड़े कष्ट अशाताके उदय से पेट पालता था। एक -दफे लकड़ीका दाम बाजारमें अधिक मिला । सब भोजनमें खर्च करने के पीछे एक रुपया बच गया । तब अपनी स्त्रीके साथ सम्मति करके उस रुस्येको भूमिमें गाड़ दिया कि कभी आपत्ति पड़ेगी तो यह शाम छायगा । कुछ दिन पीछे एक प्रवासी यात्री उसी वनमें भाया । वहां उसने अपना रत्नोंका पिटारा गाड़ दिया और तीर्थ-यानादिक्के लिये चला गया । उस दलिद्री संखने उसे गाड़ते देख लिया था। जब वह प्रवासी चला गया तब संखने उस रत्नभांडको लोभसे दूसरी जगह गाड़ दिया। और मनमें विचारने लगा कि इसमें से जब चाहूंगा एक एक रत्न निकालता रहूंगा । घरमें माकर