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जम्भूस्वामी चरित्र
सातमा अध्याय।
जंबूस्वामी श्रणिक महाराजकाराजगृहमें प्रवेश।
(श्लोक १४५ का भावार्थ) मैं शुद्ध भावों को रखनेवाले निर्मल ज्ञानधारी विमलनाथकी स्तुति करता हूं तथा अपने गुणोंकी प्राप्तिके लिये मनंत वीर्यवान अनंतनाथ भगवानको वंदना करता हूं।
जम्बूकुमारकी वैराग्यपूर्ण आलोचना।
जम्बुकुमारने जब भयानक युद्धक्षेत्रको देखा तब मनमें दयाभावपैदा होगया-विचारने लगे, संसारकी अवस्था भनित्य है । महो! जलका स्वभाव शीतल है परन्तु अग्निके संयोगसे उष्ण होजाता है, परन्तु स्वरूपसे तो जल शीतल ही है। शीतलता जलका गुण है, वैसे ही आत्माका स्वभाव शांत है, कपायके उदयसे मोहित हो जाता है। ज्ञानवान पुरुषोंने इस संसारकी स्थितिको उच्छिष्ट ( झूठन ) मानके इसका मोह त्याग किया है, परन्तु जो मज्ञानसे व मानसे अंघ हैं वे मरके दुर्गतिको जाते हैं । जो प्राणी इन्द्रियों के विषयोंमें आसक्त होते हैं वे इसीतरह मरते हैं जैसे पतंगा स्वयं
आकर अग्निमें पड़कर मर जाता है। एक तो विषयों का मिलना दुर्लभ है, कदाचित् इच्छित विषय प्राप्त भी होजावें तो उन विषयोंके भोगसे तृष्णाकी आग बढ़ती ही जाती है। ये विषय. किंपाक
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