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जम्बूस्वामी चरित्र
दुष्ट क्षत्रियने क्रोध के आवेशमें जाकर अपनी तलवार से जिनदासको मारा । वह जिन्दास मूर्छा खाकर गिर पड़ा। तब वह सत्रिय अपनेको अपराधी समझकर मारा गया । इतने में नगर के बहुत लोग वहां देखनेको भागए । जिनदासका भाई अर्हदास भी आया | आईको मूर्छित देखकर व्याकुल चित्त हो उसे यत्नपूर्वक अपने घर लेगया । शस्त्र वैद्यको बुलाकर उसकी चिकित्सा कराई परन्तु जिनदासका समाधान नहीं हुआ। ठीक है जब दुष्ट कर्मरूपी शत्रुका उदय होता है तब सब उपाय वृथा जाता है । जैसे दुर्जन पुरुष के साथ किया हुआ उपकार उसके स्वभावसे वृथा ही होता है । कहा है
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उदिते दुष्टकर्मारौ प्रतीकारो वृथाखिलः ।
निसर्गतः खले पुंसि कृताप्युपकृतिर्यथा ॥ ७९ ॥
उसको ज्ञान देने के लिये बर्हदास जैन सूत्र के अनुसार धर्मभरी वाणी कहने लगा- हे भ्रात ! इस संसाररूपी समुद्र में मिथ्याष्टी दुष्ट जीव सदा भ्रमण किया करता है, व महादुखोंको सहता है । इस जीवने संसार में अनंतवार द्रव्य, क्षेत्र, काक, भव, भाव इन पांच परिवर्तनोंको किया है। पापबंध के कारण भाव मिथ्यात, विषयभोग, कषाय व मनवचन कायके योग हैं, इनमें भी जुआ मादिके व्यसन तो दोनों कोक में निन्दनीय हैं। जूमा आदिके व्यसनोंमें जो फंस जाते हैं उनको इसलोक में भी वध बंधन आदि कष्ट होता है व परलोक में महान असाताकर्म उदयमें आकर तीव्र दुःख होता है ।
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