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जम्बूस्वामी चरित्र
तब वह उसी क्षण माया और मोहसे मांसू भरकर रोने लगा। और यह कहने लगा-हे पुत्र! तुने यह अपनी क्या व्यवस्था की है। इसका क्या कारण है ? शीघ्र भयहारी वचन कह ! क्या अपनी स्त्रीके स्नेहले थातुर हो लताके समान श्वास ले लेकर कांप रहा है। क्या किसी स्त्रीका नवीन अवलोकन किया है, जिसके संगमके लिये रुदन कर रहा है ? क्या तुझे तरुणावस्थामें कामभावकी तीव्रता होगई है, जिससे भातुर हो जल रहा है ? क्या किसी स्त्रीके वचनोंको व उसके गुणोंको स्मरण कर रहा है ! इतनेमें सर्व नगरके मनुष्य मागए। देखकर व्याकुलचित्त होगए। दुःसह शोक पृथ्वीपर छागया। सबने अन्न पानी त्याग दिया। ठीक है, पुण्यवान पदार्थको कोई हानि पहुंचती है तो सबको उद्वेग होजाता है।
___ फिर किसी उपायसे चेतनता आगई, मूर्छा टक गई। कुमार प्रातःकालके सूर्य के समान जागृत होगया । सर्व लोग पूछने लगे-हे कुमार ! मूर्छा मानेका क्या कारण है ? शीघ्र ही यथार्थ कह जिससे सबको सुख हो, चिंता मिटे। तब शिवकुमारने मंत्रीके पुत्र हदरथको जो उसका मित्र था, एकांतमें बुलाकर अपने मनका सब हाल वर्णन कर दिया। ठीक है, चिंतारूपी गूढ रोगसे दुःखी जीवोंके लिये मित्र बड़ी भारी औषधि है, क्योंकि मित्रके पास योग्य व अयोग्य सर्व ही कह दिया जाता है। कहा है:
चिंतागढ़गदार्तानां मित्रं स्यात्परमौषधम् । यतो युक्तमयुक्तं वा सर्वं तत्र निवेद्यते ॥ १५ ॥
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