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जम्बूस्वामी चरित्र
गए। वे दोनों वृषभोंके समान धर्मरूपी रथकी धुराको चलानेवाले थे (भावार्थ-दोनों मोक्षगामी आत्मा थे) तब सब मुनियोंने भावदेव मुनिको कहा-हे महाभाग ! तुम धन्य हो जो अपने भाईको यहां इससमय लेभाए हो। ___ भावदेव मुनि भक्तिपूर्वक सौधर्म गुरुको नमस्कार करके अपने योग्य स्थानपर बैठ गए।
वहांके शांत वातावरणको देखकर भवदेव मपने मनमें विचारने लगा कि मैंने नवीन विवाह किया है। मैं यहां संयम धारण कर या लौटकर घरको नाऊँ ? सूझ नहीं पड़ता है क्या करूं? चित्तमें व्याकुल होने लगा, संशयके हिंडोलेमें झूलने लगा । अपने मनको क्षणभर भी स्थिर न कर सका। कभी यह सोचता था कि नवीन वधूके साथ घर जाकर दुर्लम इच्छित भोग भोगू । मेरे मनमें लज्जा है, इस बातको मैं कह नहीं सक्ता, तथा यह मुनीश्वरोंका पद बहुत दुर्द्धर है। कामरूपी सर्पसे मैं डसा हुणा हूं। मेरे ऐसा दीन पुरुष इस महान पदको कैसे धारण कर सकेगा ? तथा यदि मैं गुरू वाक्यका अमादा करके दीक्षा धारण न करूं तो मेरे बड़े भाईको बहुत लज्जा आयगी । इस तरह दोनों पक्षकी बातोंको विचार कर शल्यवान होकर यह सोचने लगा कि दोनों बातोंमें कौनसी बात करने योग्य है, कौनसी करने योग्य नहीं है, यही स्थिर किया कि इस समय तो मुझे जिन दीक्षा लेना ही चाहिये, फिर कभी भवसर होगा तो मैं अपने घर लौट भाऊंगा।