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जम्बूस्वामी दिन दिखाई पड़ता है, तेग सौम्य शरीर परम सुन्दर व भूमयोंसे मलंकन है। तेरे हाथमें कंकण पन्धा है, तेरे यहां कोई उत्सव दिखाई पड़ता है। गुरुमहाराजके इस वाक्योंको सुनकर भवदेवमे इस नीचा कर लिया। कुछ मुसकराते हुए वतनासे डगमगाते वचनोंसे कहा---
हे स्वामी ! इस नगरमें दुर्मिषण नामका ब्राह्मण रहता है उसकी नागश्री नामकी ली है। वह कुलवान व शीलवान है। उनकी नागश्री नामकी पुत्री है। बन्धुजनोंकी आज्ञासे उसके साथ भाज मेरा विवाह वेदवाक्योंके साथ हुमा है। अपने छोटे भाईकी इस उचित वाणीको सुनकर मुनिराज बोले-हे भ्राता ! इस जगत धर्मके प्रतापसे कोई बात दुर्लभ नहीं है। धर्मसे ही इन्द्रपद, सर्वसंपदासे पूर्ण चक्रवर्तीद, नारायण व प्रतिनारायणपद व राजाका पद प्राप्त होता है। धर्मका लक्षण सर्व प्राणियोंपर दया भाव है अर्थात महिला लक्षण धर्म है, वही धर्म यती तथा गृहस्थ के मेदसे दो प्रकार हैं। तथा सम्मादर्शन सम्याज्ञान सम्यकचारित्र मय रत्नत्रयके मेदसे तीन प्रकार है ऐसा जिनेन्तुने उपदेश किया है । कहा है
सर्वप्राणिदगालक्ष्मो गृहस्थशमिनोधिा । रनत्रयमयो धर्मः स विधा जिनदेशितः ॥१५१॥' मनुष्य जन्म बहुत कठिनतासे प्राप्त होता है। ऐसे नर जन्मको पाकर जो कोई धर्मका माचरण नहीं करता है उसका जन्म