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जम्बूस्वामी चरित्र द्रव्य जल आदि स्थल हैं। पृथ्वी मादि मोटे स्कंध जो टुकडे करने पर स्वयं नहीं मिल सक्ते स्थूल स्थूल हैं।
आस्रव तत्व। भास्रवके दो भेद हैं-भावात्रव और द्रव्यास्रव । कर्मके निमिउसे होनेवाले जीवके मशुद्ध भावोंको भावास्तव कहते हैं। भागमाजुसार भावासबके चार भेद हैं-मिथ्यात्व, मविरति, कषाय तथा योग । जीवादि तत्वोंका व सच्चे देव शास्त्र गुरुका श्रद्धान न होना मिथ्यात्व है । हिंसा, असत्य, चोरी, कुशील व परिग्रह में वर्तन अविरति है । क्रोध, मान, माया, लोमके वश होना कषाय है । मन, वचन, कायके निमित्तसे भात्मामें चंचलता होना योग है। इन भावास्रबोके निमित्तसे फर्मवर्गणा योग्य पुद्गल कर्मरूप भवस्थाके होनेको प्राप्त होते हैं वह द्रव्यास्रव है।
बन्ध तत्व। भानपूर्वक बन्ध होता है अर्थात् फर्म बन्धके सम्मुख होकर बंधते हैं । इस बंधतत्वके भी दो भेद हैं-आवबन्ध और द्रव्यबन्ध । जिन मशुद्ध भावोंसे बन्ध होता है वह भावबन्ध है। कर्मवर्गणाका कार्मण शरीरके साथ बन्धजाना द्रव्यबन्ध है । बंधके चार भेद हैंप्रकृति, स्थिति, अनुभाग, प्रदेश ।
ज्ञानावरणादि पाठ फर्मरूप स्वभाव पड़ना प्रकृतिबन्ध है । कितनी संख्या किस धर्मकी बंधी सो प्रदेशबंध है। कर्मोंमें कितनी मर्यादा पढ़ी यह स्थितिबन्ध है। उन काँमें तीव्र व मंद फलदान
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