________________
जम्बूस्वामी चरित्र
मालूम होती है, मानों शरदकालके चंद्रमाकी चांदनी ही फैली हो। भाकाशमें देवदुंदुभी बाजे ऐसी मधुर ध्वनिसे बज रहे हैं कि मोरगण मेघोंके मानेकी शंकासे मदसे पूर्ण हो राह देख रहे हैं।
भगवानकी देहका प्रभामंडल बड़ा ही शोभायमान है, जिसके प्रकाशसे स्थावर जंगम जगत मानो झलक रहा है । भगवानके मुख. कमासे मेघकी गर्जनाके समान दिव्यध्वनि प्रगट होरही है, जिससे भव्य जीवोंके मनके भीतरका मोह-अंधकार नाश होरहा है, जैसे प्रकाशसे अंधकार दुर होजाता है।
हे महाराज ! इसतरह मा प्रातिहार्योसे शोभित व अनेक देवोंसे सेवित श्री वर्द्धमान जिनेन्द्र विपुलाचल पर्वतपर विरामित हैं। उनके विराजने का ऐसा महात्म्य है कि जिनका जन्मसे वैरभाव है ऐसे विरोधी पशु पक्षियोंने भी परस्पर वैरभाव त्याग दिया है। शांतिसे सिंह मृग आदि पास पास बैठे हैं। जिनका किसी कारणसे इस शरीरमें रहते हुए पासर वैरभाव होगया था वे भी भगवानके निकट भाकर वौमाव छोडकर शांतिसे तिष्ठे हुए हैं। महारान! हस्तिनी सिंहके बालकको दुध पिला रही है। मृगोंके बाल सिंहनीको माताकी बुद्धिसे देख रहे हैं। महाराज ! वहां सपोंके फणोंपर मेढक निःशंक बैठे हैं, जिसतरह पथिकजन वृक्षोंकी छायामें भाश्रय लेते हैं। ____ महागज! सर्व ही वृक्ष सर्व ही ऋतुके पत्तोंसे व फोंसे फल रहे हैं और आनंदके मारे लम्बी शाखाओं को हिलाते हुए नृत्य कर
२९