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जम्बूस्वामी चरित्र तब ऐसा मालम होता है कि इन कटनियोंपर हंस ही बैठे हैं।
भाठ मंगलद्रव्यको सम्पदा शोभायमान है। ये मंगलद्रव्य जिनेंद्र के चरणकमलोंके निकट रहनेसे पवित्र हैं व गंगाके फेन समान निर्मक स्फटिक मणिसे निर्मापित हैं। तीन कटनीदार पीठ पर गंधकुटी है, जिस पर तीन लोक नाथ निराजमान हैं। यह पीठ ऐसा शोमता है मानों देवलोकके ऊपर सर्वार्थसिद्धिके समान है। इस पीठके नीचे सुगंधित धूपके घट मालाओंसे शोभित विराजित हैं। उस अंधकुटीके मध्य में रत्तमई सिंहासन मेरुशिखरको तिरस्कार करता हुमा शोमता है। उस सिंहासनपर अंतिम तीर्थंकर श्री महावीर भगवान चार अंगुल ऊंचे अधर भएनी महिमासे विराजमान हैं। कहा है
विष्टरं तदलंचके भगवानंततीर्थकृत । चतुर्मिरगुलैः स्वेन महिन्ना पृष्ठतमलम् ॥ २८९ ॥
आठ प्रातिहार्य। इन्द्रादि देव बड़ी मजिसे पूजा कर रहे हैं। आकाशसे मेषधाराले समान फूलोंकी वर्षा होरही है। भगवान के पास आठ प्रातिहास शोभायमान हैं। अशोक वृक्ष वायुले अपनी शाखाओंको हिदाता हुमा व सूर्यके भातापको रोकता हुमा भगवान के पास शोभ रहा है। चंद्रमाकी चांदनी के समान धवल तीन छन्न शोभायमान हैं, मानों चंद्रमा तीन रूप बनोकर तीन जगतके गुरुकी सेवा कररहे है। यक्षों द्वारा ढोरे हुए चमरोंकी पंक्तियां क्षीरसमुद्रकी ताङ्गोंके समान शोभ रही हैं। भगवान के शरीरकी चमको पड़ती हुई ऐसी
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