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जम्बूस्वामी चरित्र
भावार्थ-यदि राजा धर्मात्मा होता है तो प्रजा धर्मात्मा होती है, यदि राजा पापी होता है तो प्रजा पापी होती है, यदि राजा समान होता है तो प्रना समान होती है। लोग राजाका मनुकरण करते हैं। जैसा राजा होता है वैसी प्रजा होती है।
ऐसा सुनकर वह राजा निर्दयी वचन कहता है कि जिसतरह जैन मुनिसे दण्ड लिया जाय वैसा उपाय करना योग्य है। राजाकी भाज्ञा पाकर राजाके कुछ नौकर उन जैन मुनिके पीछे जाते हैं। जब वह भिक्षा के लिये भूमि निरख कर चलते हैं। जब वे पवित्रात्मा किसी श्रावके घरमें निकट पहुंचते हैं और वह श्रावक नमोऽस्तु कहकर मुनिका पड़गाहन करके विधिक साथ भीतर लेजाकर व भक्ति पूजा करके दान देनेको खड़ा होता है और मुनि शुद्ध भावसे अपने करमें जैसे भोजनका ग्रास लेते हैं वैसे राजाके नौकर वज्रमई कठोर वचन कहते हैं कि तुम इस तरह भोजन नहीं कर सक्ते। राजाकी भाज्ञा है कि पहला प्रास राजाको करके रूपमें प्रतिदिन देना होगा। इतना सुनते ही भागमके ज्ञाता मुनि पंचमकालकी अंतिम अवस्थाका विचार करते हैं और निश्चय करते हैं कि यह पंचमकालका अंत समय है। इसीलिये ऐसा अनर्थ होरहा है। शास्त्र के ज्ञाता मुनि उस माहारके प्रासको छोड़ देते हैं और मुनि धर्मका चलना मशक्य जानकर सावधानीसे जीवन पर्यंत चार प्रकारके माहारका त्याग करके समाधिमरण धारणा करते हैं। तब मार्यिका भी सर्व पाहार त्याग कर सावधान हो