________________
जम्बूस्वामी चरित्र
छठे कालका आगमन । इस पंचमकालले अन्तमें जो व्यवस्था होती है, वह भी कुछ वर्णन की जाती है। इस पंचमकालके वीतनेपर दुखमा दुखमा नामका छठा काल आता है, उसका भी कुछ कथन किया जाता है। पंचमकालके अन्त में किसी देशका कलंकी राजा हालाहरू विष के समान धर्मका घातक प्रगट होता है। उसका भी सर्व व्यवहार प्रजाको पीडाकारी होता है । उस समय तक सर्व सुवगादि धातुएं विला जाती हैं। चमड़ेका सिक्का चल जाता है उसीसे ही माल खरीदा व वेचा जाता है। वह दुष्ट राजा प्राणियों के वांधने व माग्नेके ही वचन बोलता है। जैनधर्म सबतक बराबर चलता रहता है। क्योंकि उस समय भी एक भावलिंगी मुनि, एक आर्यिका, एक जैन श्रावक, एक श्राविका मिलते हैं। कहा है
अथ तत्रापि दृषः साक्षादव्युच्छिन्नमवाहतः । यस्मादेको मुनिजना विद्यते भावलिंगवान् ॥१५७॥ एका चाप्यर्जिका तत्र यथोक्तव्रतधारिका । सजाना श्रावकश्चैको जैनधर्मपरायणः ॥१५८॥
भावार्थ-वह कलंकी पापी राजा किसी दिन विचारता है व कहता है-क्या कोई मेरी माज्ञासे विरुद्ध है ? मुझे कर नहीं देता है ? ऐसा सुनका कितन अधम पुरुष कहते हैं कि-महाराज ! एक जनका मुनि है जो भापको कर नहीं देता है। कहा है
राशि धर्मिणि धर्मिष्ठाः पापे पापाः समे समाः । लोकास्तदनुवर्तते यथा राजा तथा प्रजाः ॥ १६१॥