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जम्बूस्वामी चरित्र
जैसे एक मासमें शुक्ल पक्षके पीछे कृष्ण पक्ष व कृष्ण पक्षके पीछे शुक्ल पक्ष आता है, इसी तरह ये दोनों काल क्रमसे वर्तते हैं । अब यहां भरतमें भवरार्पिणीशाल चल रहा है। यहां जब पहला काल आर्य खण्डमें था तब उसकी स्थिति चार कोडाकोड़ी सागरकी थी।
___ भोगभूमिकी शोभा। इस पहले सुखमा सुखमाकालमें देवकुरु व उत्तर कुरु उत्तम मोग्भूमि समान अवस्था थी तब जो युगलिये मनुष्य उत्पन्न होते थे उनकी मायु तीन पत्यकी होती थी व शरीरकी ऊंचाई ६००० छः हजार धनुषकी होती थी। शरीरका संहनन रजवृषभ नाराच होता था । अर्थात् वज्र के समान हद नशे, हड्डियों के बंधन, व हड्डयां होती थीं। सबका स्वरूप सुन्दर व शांत होता था। उनका शगैर उपाए सुवर्णके समान चमकता था। मुकुट, कुंडल, हार, भुजबन्द, कड़े, कर्धनी तथा ब्रह्मसूत्र, ये उनके नित्य पहराबके आभूषण थे। इस उत्तम भोगभूमि पुरुष पूर्व पुण्यके उदयसे रूप, लावण्य व सम्पदासे विभूषित होकर अपनी स्त्रियोंके साथ उसी तरह क्रीडा करते थे जिस तरह स्वर्गमें देव देवियों के साथ रमण करते हैं । भोगभूमिवासी बड़े बलवान, बड़े धैर्यवान, बड़े तेजस्वी, बड़े प्रभावशाली महान पुण्यवान होते हैं। उनके कंधे बड़े ऊंचे होते हैं । उनको भोजनकी इच्छा तीन दिन पीछे होती है। तब वे बेरफल के समान अमृतमई अन्न खाकर ही तृप्त होजाते