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भी जैन नाटकीय रामायण ।
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तुम्हारे स्वामी के पास पहुंचा दूंगा ! वरना न मालूम तुम्हें और क्या २ कष्ट यहां रह कर उठाने पड़ेंगे। . "
सीता-नहीं भाई ! मैं इस प्रकार नहीं जा सकती । यदि मेरे स्वामी मुझसे पूछेगे कि तु बिना बुलाई क्यों आई तो मैं क्या उत्तर दूंगी। लो तुम मेरा यह चूडामणी उन्हें दे देना भोर मेरी सब अवस्था उन्हें बता देना। .
हनुमान जैसी माज्ञा । मैं तुम्हारे लिये खाना मंगाता हूं। क्यों कि अब तुम्हारी प्रतिज्ञा पूरी होगई है। मैं विभीषण के घर जाता हूं वहीं भोजन करूंगा । प्रणाम, (चले जाते हैं। पर्दा गिरता है । विभीषण और हनूमान
दोनों आते हैं। विभीषण--कहो भाई साहब क्या समाचार लाये ?
हनुमान में माता सीता को भोजन खिला पाया हूं। माता के रूप को देखकर मुझे अत्यन्त हर्ष हुआ ?
विभीषण-क्या कहूं बेचारी भांति २ के कष्ट पा रही है। भाई साहब को मैं भनेक बार समझा चुका किन्तु उनकी समझ में एक भी नहीं माता । आप उन बेचारों की सहायता कर रहे हैं इसमें मुझे बड़ा हर्ष है।
हनूमान-मुझे एक बार रावण से मिलना है।