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चतुर्थ माग
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उपकार मानते हो तो कहीं से भी मेरे भाई साहब की स्त्री को ढूंढ कर बायो। विराधित-स्वामी! मैं इसके लिये भासक प्रयत्न करूंगा।
रामचन्द्र- गाना वन बन में राम पुकार रहा, सीता सीता सीता सीता । हे वैदेही पतिव्रता सती तू, कहां गई सीता सीता ॥ मेरे बिन बैन न पड़ती थी, संग में रहती थी छाया सी। किन भांति अब दिन काटेगी, शत्रू केघर सीता सीता।
विराधित-हे प्रभो श्राप शोक न तजिये । सीता के भाई भामंडल परे मैं समाचार भेजना हूँ । प्राय यहां से पाताल लंका के लिये चले चलिये । खरदूषण सब विद्याधरों का स्वामी था उसके मरने पर वो विद्याधा कोप करके आपके ऊपर आपत्ती डालेंगे । पवनसुत हनुमान उसका जमाई है वो पृथ्वी पर अत्यन्त बन्नुबान है। अपने ससुर को मृत्यु सुन कर वो अवश्य आपको हानी पहुंचायेगा सुग्रीव श्रादि सब उसके परम मित्र हैं। उसकी मृत्यु सुन कर कोप करेंगे । इस लिये आप शीघ्र ही पाताल लंका चले चलिये।
राम-भाई । तुम सन्त्र कहते हो । वास्तव में तुम बड़े