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श्री जैन नाटकीय रामायण
वह खड़ग लिया है । अहा इन दोनों भाइयों का कैसा सुन्दर रूप है । ये अपनी सुन्दरता से देवों को भी मात कर रहे हैं । यदि मैं इनकी स्त्री बनूं तो मेरे परम सौभाग्य हैं ।
राम-सीता ! देखो वह सामने कोई दुखिया नारी रोरही जाओ उसे धैर्य बंधाकर यहां ले थाओ ।
सीता —— जैसी पती की आज्ञा । (चन्द्रनखा के पासजाकर )
क्यों बहन आप यहाँ पर इतनी क्यों दुखी हो रही हैं, मेरे नाथ
आपको बुलाते हैं ।
चन्द्रनखा - हे नारी आप बड़ी दयालू हैं। आपके स्वामी बड़े दयालू हैं । मैं अभी चलती हूं । ( जाती है )
राम - हे अबला, तुम क्यों इस प्रकार हृदय को भेदने वाला रुदन कर रहो थीं ?
चन्द्रनखा - हे सुन्दरता के अवतार । दयासागर ! मेरा दुख न पूछो, मैं एक राज कन्या हूं । मेरे माता पिता मुझे बालक को छोड़कर मर गये थे, बन्धू जनों ने मुझे बन में पटक दिया था, तब से अब तक मैं कन्या रूप में ही फिर रही हूं । कोई आश्रय न होने से मैं इधर उधर भटकती हूं । और रोती हूं, आप दोनों ही परम सुंदर और दयालु हैं। दोनों में से कोई भी मुझे अपनी प्रिया बनाकर मुझे आश्रय दें। मैं आपको हृदय से चाहती हूं ।