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चतुर्थभाग
( २३९ )
खड़ग जान कर उठा लिया । तथा इसकी परीक्षा करने के लिये उस बांसों के बीड़े पर चलाया ! उसमें बैठा हुआ वह विद्याधर भी उसी के साथ कट गया ।
राम-- भाई तुमने ये अच्छा नहीं किया ।
लक्ष्मण -- किन्तु भाई साहब जिसके साधने में बारह वर्ष सात दिन लगते हैं यदि मैं उसे एक दिन में ही ले आया तो मैंने क्या बुरा किया |
राम ---- हां ये तुम्हारे पूर्वोपार्पित पुराय का फल है जो तुम्हें विना प्रयत्न के ही ऐपी दुर्लभ वस्तू की प्राप्ती हुई किन्तु मुझे मालूम होता है कि इसका परिणाम अवश्य कुछ रंग लायेगा |
( चन्द्रनखा रोती हुई आती है । स्वगत में ही कहती है। चन्द्रनखा --- हाय न मालूम किस दुष्ट
पापी ने मेरे पुत्र शंबूक को मार कर उसका खड़ग लेलिया में रावण की बहन चन्द्रनखा । खरदूषण की नारी हूं । उस अन्यायी को अवश्य ही इसका फल दूंगी । हाय पुत्र तुम्हें बारह वर्ष चार दिन विद्या साधते होगये थे । केवल तीन दिन शेष थे । इस खड़ग का लेने वाला अवश्य कोई रावण का बैरी सिद्ध होगा ।
( राम लक्ष्मण आदि की ओर देख कर )
मालूम होता है इनमें जो ये छोटा बैठा हुआ है इसी ने
」