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श्री जैननाटकीय रामायण
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दूत--(आकर) श्री रामचन्द्रजी की और सीताजी की जयहो।
सीता-कहो दृत क्या समाचार लाये हो ?
दूत-मैं ऐसा समाचार लाया हूं जो अभी तक कोई नहीं लाया होगा।
सीता-वह क्या शीघ्र कहो ? दूत-श्रापके भाई...........
सीता-मेरा माई ! मेरा भाई कहां हैं . तु मेरी हंसी क्यों उड़ाता है उसे तो जन्मते ही कोई हर ले गया है । वह अब कहां । हाय भाई....."( रोने लगती है )
दूत-श्रापके भाई आपसे मिलने आ रहे हैं। वह एक विद्याधर के द्वारा पाले गये हैं। उनका नाम भामण्डल है, उन्हें जाती म्मरण हुआ है । आप हर्ष मनाइये ।।
सीता-कहां है ! कहां है !! कहां है !!! ( चारों तरफ देखती है, भामण्डल को आते देख उससे चिपट जाती है।) भाई तुम अब तक कहां रहे ? मुझे क्यों नहीं मिले ? माता तुम्हारे लिये रात दिन रोती हैं। (गले चिपटकर रोने लगती है, भामण्डल भी रोने लगता है)
भामण्डल-हाय कर्मों की गती विचित्र है। ऐसी बहन से मैं अब तक न मिल सका वहन ! तुम रोती क्यों हो ! खुशी मनाओ । देखो सामने तुम्हारे भर्तार रामचन्द्रजी खड़े हैं । हघर