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________________ - - संकासिया, २, गवेधुआ, ३, और विज्जनागरी. ४. ___"कुलोंके नाम.” वच्छलिज्ज, १, पीइधम्मीय, २, हालिज्ज, ३, पुफ्फमित्तिज, ४, मालीज्ज, ५, अज्जवेडीय, ६, और कएह सह. ७. ____ (११) स्थविर ब्रह्मगणि. (१२) स्थविर सोमगणि. कल्पसूत्रादौ. (३३) (१०) श्री सुस्थितसूरि, तथा श्री सुप्रतिबुद्धसूरि. - यहांसें निग्रंथ गच्छका दूसरा नाम कौटिक गच्छ हुआ. अ-श्री सुस्थित सुप्रति बुद्धके पांच स्थविर हुए. (१) स्थविर इंद्रदिन्न. (२) स्थविर प्रिय ग्रंथ, तिसमें माध्यमिका शाखा निकली. (३) स्थविर विद्याधर गोपाल, तिससे विद्याधरी शाखा निकली. (४) स्थ-. विर ऋषिदत्त. (५) स्थविर अरिहदत्त.. ... .. . ब-श्री सुस्थित सुप्रतिबुद्ध के समयमें पन्नवणा सूत्र ___कर्ता श्री श्यामाचार्य हूए. तिनोंका श्री वीरात् , ३७६, वर्षे स्वर्ग. कल्पसूत्र पट्टावल्यादौ. '...
SR No.010504
Book TitleJain Mat Vruksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1900
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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