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________________ ( ४८ ) पालिया, २, अंतरिजिया, ३, और खेमलिजिया... ___“कुलोंके नाम.” गणियं, १, महियं, २, कामद्वियं, ३, और इंदपुरगं. ४. ___(५) स्थविर सुस्थित, और (६) स्थविर सुप्रतिबुद्ध. इन दोनोंसें कोटिक गच्छ निकला. तिसकी चार शाखा, और चार कुल हूओ. ___ “शाखाओंके नाम." उच्च नागरिशाखा, १, विद्याधरी, २, वयरीय, ३, और मजिमिल्ला. ४. ___“कुलोंके नाम.” बंभलिज, १, वथ्थलिज, २, वाणिज्ज, ३, और पएह वाहण, ४. (७) स्थविर रक्षित. (८) स्थविर रोहगुप्त. (९) स्थविर ऋषिगुप्त, तिससे माणव गच्छ, तिसकी चार शाखा, और तीन कुल. ___“शाखाओं के नाम.” कासवज्जिया, १, गोयमज्जिया, २, वासठिया, ३, और सोरठिया, ४. "कुलोंके नाम.” ऋषिगुप्त, १, ऋषिदत्तिक, २, : और अभिजयंत. ३. (१०) स्थावर श्री गुप्त, तिससें चारण गच्छ, तिसकी, ४, चार शाखा, और सत, ७, फुल. "शाखाओं के नाम." हारीयमा लागारी, १,
SR No.010504
Book TitleJain Mat Vruksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1900
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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