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________________ ३३ श्री यक्षदेवसूरि . ४९ श्री कक्कसूरि । ३४ श्री ककुदाचार्य ५० श्री देवगुप्तसूरि विक३५ श्री देवगुप्तसूरि . मात् ११०५ ३६ श्री सिद्धसूरि ५१ श्री सिध्धसूरि ३७ श्री ककसूरि . ५२ श्री कक्कसरि विक्र३८ श्री देव गुप्तसार मात् ११५४ क्रिया ३९ श्री सिध्धसरि . हीन साधुकों गच्छ ४० श्री ककसूरि वहार काढे हेमाचार्य ४१ श्री देवगुप्तसरि विक्र- के कथनसें. मात् ९९५ ५३ श्री देवगुप्तसूरि . . ४२ श्री सिध्धसूरि ५४ श्री सिध्धसूरि ४३ श्री ककसूरि पंचप्रमा- ५५ श्री कक्कसूरि विक्रण ग्रंथ कर्ता मात् १२५२ ४४ श्री देवगुप्तसूरिनव पद ५६ श्री देवगुप्तसूरि ९५७ श्री सिध्धसूरि । प्रकरणकर्ताविक्रमात् । मा ५८ श्री कक्कसरि १०७२ ४५ श्री सिध्धसरि . ५९ श्री देवगुप्तसरि ४६ श्री कक्कसरि ६० श्री सिध्धसरि ४७ श्री देवगुप्तसूरि ६१ श्री कक्कसार ४८ श्री सिध्धसरि ६२ श्री देवगुप्तसीर
SR No.010504
Book TitleJain Mat Vruksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1900
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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