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(३८) आया. तिस नदीके प्रवाहमें अनेक मरे हुये मच्छ वहते वहते कांठे ऊपर आलगे. तिनकों देखके तिस बुद्धकीर्तिने अपने मनमें असा निश्चय करा कि, स्वतः अपनेआप जो जीव मर जावे, तिसके मांस खानेमें क्या पाप है ? असा विचार करके, तिसने अंगीकार करी हूइ प्रव्रज्जा व्रतरूप छोडदीनी. अथात् पूर्व अंगीकार करे हूए धर्मसें भ्रष्ट हो कर मांस भक्षण करा. और लोकोंके आगे जैसा अनुमान कथन करा. मांसमें जीव नहीं है, इस वास्ते इसके खानेमें पाप नही लगता है. फल, दहि, दूध, मिसरी (साकर) कीतरें. तथा मदीरा पीने में भी पाप नही है, ढीला द्रव्य होनेसें, जलकीतरें. इस तरेकी प्ररूणा करके तिसने बौद्ध मत चलाया. और यहभी कथन करा. सर्व पदार्थ क्षणिक है, इस बास्ते पाप पुन्यकाकर्ता, अन्य है, और भोक्ता अन्य है, यह सिद्धांत . कथन करा. बुद्ध कीर्तिके दो मूख्य शिष्य हुए. मु. द्गलायन, (१) और शारीपुत्र, (२) इनोंने बौद्ध मतकी वृद्धि करी. यह कथन पाश्चात्य वौद्ध आसरी है. व-श्री पार्श्वनाथजीसें लगाके आज पर्यंत जो पट्टा