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________________ ७४ श्री जैनहितोपदेश भाग २ जो. धर्मोपकरणादिक केवळ धर्म निर्वाहने माटेज जरुर जेटलां राखी तेनो यथार्थ उपयोग करवा उपरांत कोइ पण वस्तु अल्प मल्यवाळी या बहु मूल्यवाळी होय तेना उपर मूर्छा करवी नहि. निःस्पृहता राखवी, अने परस्पृहा तजी देवी ते परिग्रह त्याग नामे पांचमुं महाव्रत छे. ____ उक्त पंच महाव्रत उपरांत मुनिए रात्री भोजननो सर्वथा त्याग करवानो छे. जेथी षटरस पैकी कोइपण वस्तु-अन्न पानादिकनो सर्वथा निषेध सूर्यास्त पहेलां (बे घडीथी) सूर्योदय पछी (वे घडी) सुधी मुनिने माटे निश्चित होवाथी तेवो पण अभ्यास प्रथमथीज कर्तव्य छे. मुनिने उत्तम प्रकारनी क्षमा, मृदुता, रुजुता, अने संतोषादि दशविध यतिधर्म बहुज बारीकीथी निरंतर आराधवा योग्य छे. समतादिक श्रेष्ट धर्मना सेवनथी मुनिजनो शीघ्र मोक्ष मुखने प्राप्त थाय छे. तेथी अंतरमां मोक्षार्थीजनोने एलुंज शरण योग्य छे. ३२ दुःखदायी शोकनो त्याग कर. इष्ट वस्तुना वियोगथी के अनिष्ट वस्तुना संयोगथी बहुधा मुग्ध अज्ञानी जनोने जे अंतरमां दुःखकारी मोह पेदा थाय छे अने रुदनादिक विविध चेष्टाओ करावे छे तेनु नाम शोक कहेवाय छे.
SR No.010503
Book TitleJain Hitopadesh Part 2 and 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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