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श्री जैनहितोपदेश भाग २ जो..
करशो नहि. ज्यां सुधी मारा खोळीयामां प्राण छे त्यां सुधी तमारो वांको वाळ करवाने कोइ समर्थ नथी. तमे सुखेथी अहिं रहो. आवा आवकारवाळा आश्वासनथी अत्यंत खुशी थयेलो प्रधान जूहार मित्रमुंज शरण करीने रह्यो. काळ जतां राजानो कोप पण उपशांत थयो, अने प्रधाननी भीति नष्ट थइ गइ. पण आवेली विपत्तिमां तेने मित्र संबंधी यथार्थ अनुभव थइ आव्यो. आपणे पण आमांथी बहु सरस शिखामण लेवानी छे. यमराजाने जितशत्रु राजा समान समजबो, अने आत्माने मुबुद्धि प्रधान समान समजवो, तेमज देहने नित्य मित्र समान, स्वजन वर्गने पर्व मित्र समान अने परम उपगारी धमैने जुहार मित्र समान समजवो. ज्यारे यमराज कुपित थाय छे, अने कोइनो अवसान वखत आवे छे त्यारे ते गाभरो वनीने पोताना वचाव माटे वहु बहु फांफां मारे छे. परंतु ते सर्वे निष्फळ जाय छे. प्रतिदीन यन्त्रपूर्वक पाळी पोषीने पोटो करेलो देह तेने लगारे सहाय देतो नथी, तेमज वळी -प्रसंगे पोषवामां आवता स्व. जनो पण तेने मुखथी मीटुं वोलवा उपरांत कंइपण विशेष सहाय करी शकता नथी. परंतु जुहार मित्रनी जेम अल्प परिचित छतां ऊदार आशयवाळो धर्मज केवळ परम उपकारी बघुनी परे परमः सहायभूत थाय छे. एम समजीने शाणा माणसोए दुष्ट देहादिकनो मोह तजीने एकांत हितकारी परम गुणनिधान:सद्गतिदाता धर्मनोज आश्रय करवो युक्त छ, तेनी उपेक्षा करी देहादिक उपर