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श्री जैनहितोपदेश भाग २ जो. खरुप समजीने सुवुद्धिजनोए तेनो त्याग करवो योग्य छे. केमके क्षणिक विषय मुखनी खातर तेथी असंख्य के अनंत जीवोनो विध्वंस थाय छे.
एक तलमात्र भूमिकंदमां पण अनंत जीवो रहेला छे. तेथी पशुनी पेरे विवेक रहित तेवी अभक्ष्य, अनंतकाय वस्तुओने प्रमाण रहित खानार माणसो अनंत जीवोनो संहार करी क्षणिक तृप्ति मेंळवी अधोगतिने पामी अनंत जन्म मरण संबंधी दुःखने प्राप्त थाय छे,
तिलमात्र मुखने माटे मेरुथी पण मोटुं दुःख मूर्ख लोको अज्ञानताथी मागी लेछे जिह्वेद्रियने वश करी अभक्ष्य मात्रनो त्याग करनार मुबुद्धिजनो सर्वत्र सुखी थाय छे. .
रस लंपट जीवो अनेक व्याधिओने भोग थइ पडे छे तेम जीतेंद्रिय कदापि थइ पडतो नथी. एम समजीने पण अभक्ष्य भक्षगथी सदंतर दूरज रहेवा प्रयत्न करवो.
औषध उपचारनी खातर मध, माखण विगेरे अभक्ष्य वस्तु वापरी खानारने पण परिणामे अहितज कहेलुं छे. तेथी तेवा विषम संयोगोमां विवेकी माणसोए विशेष सावचेत रहेवू योग्य छे. (युक्तछे.)
- पवित्र दीक्षा ग्रहण कर्या छतां रसनेंद्रियने वश थइ यथेच्छित. भोजन करनार भिक्षु मंगू आचार्यनी पेरे विडंबनापात्र थाय छे..