________________
श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो.
(२४८) अनेक प्रकारनी आपत्तिने आपनार प्रमाद समान कोइ शत्रु नथी.
१८४
(२४९) मरण समान कोई भय नथी अने तेथी मुक्त करनार वैराग्य समान कोई मीत्र नथी, विषयवासना जेथी नाबुद थाय तेज खरो वैराग्य जाणवो.
(२५०) विषयलंपट - कामांसमान कोई अंध नथी केमके ते विवेकशून्य होय छे.
(२५१) खीना नेत्र कटाक्षथी जे न डगे तेज खरो शूरवीर छे.
(२५२) संत पुरुषोना सदुपदेश समान वीजुं अमृत नथी. केमके तेथी भत्र ताप उपशांत थवाथी जन्म मरणनां अनंत दुःखोनो अंत आवे छे.
(२५३) दीनतानो त्याग करवा समान बीजो गुरुतानो सीधो रस्तो नथी.
(२५४) स्त्रीनां ग्रहन चरित्रथी न छेतराय तेना जेवो कोइ चतुर नथी.
(२५५) असंतोषी समान कोइ दुःखी नथी केमके ते मंमण शेठनी जेवो दुःखी रहे छे.