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________________ श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो. १७३ (१६७) मुमुक्षुजनोए मुख्यपणे मनने गोपवीने धर्म ध्यानमां जोड बुं जोइए. जेम वने तेम तेने विविध विकल्प जालथी मुक्त राखवुं जोइए. ( १६८) मुमुक्षुजनोए मुख्यपणे तथाप्रकारना कारणविना मौन धारण करी रहेवुंज जोइए जरुर जणातां सत्य निर्दोषज भाषण कर जोइए. (१६९) मुमुक्षुजनोए मुख्यपणे संयमार्थे जवा आववानी ज-रूर न होय तो कायाने काचवानी पेरे गोपवी राखवी जोइए स्थिर आसन करीने पवित्र ज्ञान ध्याननोज अभ्यास करवो जोइए. ( १७० ) मुमुक्षुजनोए चालवानी, वेसवानी, उठवानी, सुवानी खावानी, पीवानी के बोलवानी जे जे क्रिया करवी पडे ते ते कोइ जीवने इजा न थाय तेमज संभाळथीज करवी जोइए. (१७१) सुमुक्षुजनोए रसमृद्ध नहि थतां परिमितभोजी थवं जोड़ए. ( १७२) मुमुक्षुजनोए संयम अनुष्ठानने समजपूर्वक प्रमाद रहित सेवीने अन्य मुमुक्षुजनोने यथाशक्ति संयममां सहायभूत थवं जोइए. एक क्षण मात्र पण कल्याणार्थीए प्रमाद करवो न जोइए. (१७३) प्रीय मनोहर अने स्वाधीन भोगने जे जाणी जोइने तजे छे, तेज खरो त्यागी कहेवाय छे.
SR No.010503
Book TitleJain Hitopadesh Part 2 and 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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