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श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो. १६५ मुनिने तथा कोशाए सिंह गुफावासी साधुने प्रतिवोध आपीने संयम मार्गमा पुनः स्थाप्या तेम निःस्वार्थ बुद्धिथी मोक्षार्थी जीवने अवसर उचित आलंबन आपनार मोटो लाभ हांसल करी शके छे.
(१२५) मोक्षार्थी जनोए हमेशां चढताना दाखला लेवा यो. ग्य छे पण पडताना दाखला लेवा योग्य नथी. चढताना दाखलाथी आत्मामां शूरातन आवे छे, अने पडताना दाखलाथी कायरता आवे छे.
(१२६) च्हाय तो पुरुष होय के स्त्री होय पण खरो पुरुषार्थ सेववाथीज ते सद्गति साधी शके छे. पुरुष छतां पुरुषार्थहीन होय तो ते पुंगणमां नथी अने स्त्री छतां पुरुषार्थयोगे पुंगणनामां गणवा योग्यज छे. पूर्वे अनेक उत्तम स्वीओओ पुरुषार्थना वळे परमपदनो अधिकार प्राप्त कर्यों छे. मोक्षार्थी जनोए एवा चहताना दाखला लेवा योग्य छे. तेथी स्वपुरुषार्थ जागृत थाय छे. __ (१२७) केवळ पुरुषज परमपदनो अधिकारी छे, स्त्रीने तेवो अधिकार नथी एम बोलनारा पक्षपाती या मिथ्याभापी छे खरी बात तो ए छे के जे खरो पुरुषार्थ सेवे छे ते च्हाय तो पुरुष होय यातो स्त्री होय पण अवश्य परमपदनो अधिकारी होवाथी परम-पद मोक्षसुखने साधी शके छे. पुरुपनी परे अनेक स्त्रीओए पूर्व परमपद साधेलुं छे.