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श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो.
२. बाहदृष्टिपणुं तजीने अंतर दृष्टिथी आत्म-निरीक्षण करनारो अंतर-मात्मा ध्याता-ध्यान करवानो अधिकारी छे. समस्त दोषने दली निर्मल स्फटिक जेवू शुद्ध स्वरूप जेमने संपूर्ण प्रगट्यु छे. एका परमात्मा, ध्येय-ध्यानगोचर करवा योग्यछे. आवा ध्येयमां एकता संलग्न भान ते ध्यान अने ए त्रणेनी अभेदता थवी ते एकता अथवा लय कहेवाय छे. एवी एकतामा हुँ ध्याता छु अने प्रभुजी ध्येय छे एवं भान पण होतुं नथी, एटले हुं प्रभुना ध्याना लीन थयो ढु एवो पण भेदभाव रहेतो नथी. तेमां तो केवल एकाकार वृत्तिज बनी रहे छे.
३. जेम चंद्रकान्त विगेरे मणिमां सामी वस्तुनुं प्रतिबिंब पड़ी रहे छे तेम (ध्यानवडे) अंतर मलनो क्षय थये छते निर्मळ एवा अंतर-आत्मामा परमात्मानी प्रतिछाया (पतिबिंब) पडि रहे छे. सर्व अंतरमलनो सर्वथा क्षय थये छते ते अंतर आत्माज परमात्मारूप . रहेछे. पण ते पहेलो पण ध्यानना दृढ अभ्यासी मुमुक्षुने एकता
प्रमात्म खरूप झलकी रहेछे. ''प्रथम तो आत्म-अनुभव सारी री थायछे
य छे. त्यारबाद पवित्र एका तीर्थगवनी सन्मुखताथी तीर्थकर
पमार्थ प्रगटपणे स