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श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो.
॥ रहस्यार्थ ॥ १. जीवने मोक्ष सुख साथे जोडी आपे एवो सर्व सदाचार योग' ना नामथी ओलखाय छे. तेना पांच प्रकार आ प्रमाणे छे. १ स्थान (आसन-मुद्रा विशेष ) २ वर्ण (अक्षर विशेष ) ३ अर्थ ४ आलंबन (प्रतिमादि) अने ५ एकाग्रता (मननी निश्चलता.) ____२. तेमां पूर्वला बे कर्मयोग कहेवाय छे. अने पाछली त्रण, ज्ञान योग कहेवाय छे. आ योग विरति (निवृत्तिशील) वंतमां निश्चयथी होय छे. अने वीज मात्र तो अनेरामां पण होय छे. ए व- ' चनमां एवो ध्वनि थाय छे के योगना अर्थीए निवृत्तिशील थर्बु जोइये.
३. आ पांचे योगमांना प्रत्येकना कृपा, निर्वेद, संवेग अने शीतलताने करनारा १ इच्छा, २ प्रवृत्ति, ३ स्थिरता अने सिद्धि एवा च्यार च्यार भेदो कहेला छे. ते दरेकर्नु लक्षण आ प्रमाणे.
४. तेवा योग-सेवीनी कथामां भीति थाय ते इच्छा योग उक्त योगर्नु पालन करवामां तत्परता तजाय ते प्रवृत्ति योग. ते योगर्नु सेवन करतां अतिचारादिक दूषण लागे नहिं, लागवानी बीक पण रहे नहि, ते स्थिरता योग अने स्वयं योगनी सिद्धि पूर्वक अन्य (भव्य) जीवोने योगनी प्राप्ति कराववी तेनुं नाम सिद्धि योग समजवो.