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श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो. ५५ मुनिपणुं भजनारा निथ साधुओ एवो उत्तम लाभ हाँसल करी शके छे,
६. जेवू शोफ (सोजा) नुं पुष्टपणुं, अथवा वध्य (वध करवा लइ जवामां आवनार) ने शणगारवू नकामुं छे, तेवोज आ संसारनो उन्माद अनर्थकारी छे, एम समजीने मुनि सहज संतोष यह रहे छे. संसारनु असारपणुं सम्यग् विचारी संतोष वृत्तिथी जे सहजानंदमां मग्न थइ रहे छे तेज खरो मुनि-निग्रंथ छे.
७. वचन नहि उचरवारुप मौन तो एकेंद्रियादिकमा पण होई शके छे तेवा मौनथी आत्माने कंइ विशेष लाभ नथी, खरो लाभ तो ए छे के पुद्गलिक प्रवृत्तिमांथी विरमी सहज आत्म स्वभावमा ज मनाथवा मन, वचन अने कायानो सदा सर्वदा सदुपयोग कर्या. करवो.
८. जे समजीने विवेकथी स्वकर्तव्य बजावे छे, जेनी क्रिया दीपकना जेवी ज्ञान-ज्योतीमय छे, तेवा सम स्वभावी महापुरुष न मौन श्रेष्ट छे. समतावंत महा मुनिज श्रेष्ट मौन सेवी शके छे.
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