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श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो. मुनिपणुं भजनारा निथ साधुओ एवो उत्तम लाभ हाँसल करी शके छे.
६. जेवू शोफ (सोना)नु पुष्टपणुं, अथवा वध्य (वध करवा लइ जवामां आवनार) ने शणगार, नकामुं छे, तेवोज आ. संसारनो उन्माद अनर्थकारी छे, एम समजीने मुनि सहज संतोषी यह रहे छे. संसारनु असारपणुं सम्यग् विचारी संतोष तिथी जे. सहजानंदमां मम थइ रहे छे तेज खरो मुनि-निग्रंथ छे.
७. वचन नहि उचरवारुप मौन तो एकेंद्रियादिका पण होई शके छे तेवा मौनथी आत्माने कंइ विशेष लाभ नथी, खरो लाभ तो ए छे के पुद्गलिक प्रवृत्तिमाथी चिरमी सहज आत्म स्वभावमा ज मन थवा मन, वचन अने कायानो सदा सर्वदा सदुपयोग कर्या. करवो.
८. जे समजीने विवेकथी स्वकर्तव्य बजावे छे, जेनी क्रिया दीपकना जेवी ज्ञान-ज्योतीमय छे, तेवा सम स्वभावी महापुरुषर्नु न मौन श्रेष्ट छे. समतावंत महा मुनिज श्रेष्ट मौन सेवी शके छे,