SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैनहितोपदेश भाग ३ जो. ३. फक्त पुद्गलन पुद्गलथी लेपाय छे. पण चेतन पुद्गलथी लेपातो नथी. जेम आकाश अंजनथी लेपातुंज नथी तेम आत्मा पण कर्म अंजनथी लेपातो नथी.' एवा सम्यग् विचार पूर्वक विवेक सेवनारो सत्पुरुष कदापि क्लिष्ट कर्मनो भागी थतोज नथी. परंतु जे अनादि अविद्या योगे मोहने वश थइ जडवत् बनी पुद्गलमांज आनंद मानी बेसे छे तेवो पुद्गलानंदी तो मोह मायाना पाशमां पडी जरुर क्लिष्ट कर्म बंधननोज भागी थाय छे. ४६ ४. निर्लेप दृष्टि एवा सत्पुरुषनी सकल सापेक्ष क्रिया विभामां जता उपयोगने वारवा माटे होय छे. साध्य दृष्टिवाळानी सकल क्रिया सापेक्ष-सहेतुकज होय छे, तेथी आत्मानंदी पुरुष जे जे क्रिया करे छे तेनो हेतु पुद्गलमां जती दृष्टिने रोकवा अने स्वभाव रमणी थवा माटेज होय छे. ज्यां सुधी संपूर्ण स्वभाव रमणी न थवाय त्यां सुधी तेवो संपूर्ण अधिकार पामवा अने बाधकभूत विभाव उपयोगने वारवा स्वानुकूल क्रिया करवानी खास जरूर पडे से ५. तप अने ज्ञान विगेरेनो मद करनारो गमे तेवी आकरी कष्ट करणी करतो होय तोपण कर्मथी लेपाय छे। अने निर्मल भावथी जेतुं अंतःकरण भरेलुं होय ते कदाच तेवी आकरी करणी करी शकतो न होय तोपण कर्मथी लेपातो नथी. एम समजीने शाणा *
SR No.010503
Book TitleJain Hitopadesh Part 2 and 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy