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जैनहितोपदेश भाग ३ जो. कार प्राप्त कर्या पहेला आपमतिथी जेओ सदाचारनो अनादर करेछे, सेओ उभय भ्रष्ट थइ अंते भारे पश्चातापना भागी थाय छे, माटे प्रथम आचार शुद्धिद्वारा मन शुद्धि करी ते वडे अनुक्रमे वचन अने काय शुद्धि प्राप्त करवा प्रयत्न सेववो त्रिविध शुद्धिथी सहज समाधि सिद्ध थतां अनुक्रमे विविध विकल्पो तथा क्रियाओनो अंत आवशे ए वात खात्री पूर्वक मानवी.
७. त्यागी-संयमी सिद्ध योगी थइने समस्त योग-व्यापारनो त्याग करे छे अने संपूर्ण विवेक योगे निर्गुण ब्रह्म-परमात्म पदने . प्राप्त करे छे. ए त्यागनुंज माहात्म्य छे.
८. संपूर्ण त्यागी-संयमी साधु निर्मल चंद्रनी पेरे वस्तुतः अनंत गुण ज्योतिथी स्वतः प्रकाशे छे. संपूर्ण विभाव त्यागथी पूर्ण विवेक योगे निर्मल आत्मस्वभाव स्वतः प्रगटे छे.
॥ ९ ॥ क्रियाष्टकम् ॥ ज्ञानी क्रियापरः शान्तो, भावितात्मा जितेंद्रियः॥ स्वयं ती! भवांभोधेः, परं तारयितुं क्षमः ॥ १॥ . क्रियाविरहितं हंत, ज्ञानमात्रमनर्थकम् ।।