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२० जनहितोपदेश भाग ३ जो.
३, गमे तेवा संयोगोमां जे समता-धारी राखी मुंझाता नथी आकासनी जेम पाप, पंकथी लेपातॉज नथी. सम विषम संयोगोमां झाइ जे संकल्प विकल्पने वश थइ आर्तध्यानमां पड़ी, जाय छे जि पाप पंथी लेपाय छे.
४. संसारमा रह्या छतां ठेकाणे ठेकाणे संसारनु नाटक जोइने ने खेद पामता नथी तेत्रा मध्यस्थ दृष्टि मोहथी लेपाता नथी. संसामां विचित्र संयोगयोगे पण जे समभाव तजता नथी अने सर्वत्र नमानभाव राखे छे एवा समभावीने समताना बलथी मोह पराजित करी शकतो नथी.
५. मोहनी प्रवलताथी विविध विकल्पोने वश थइने जीव दीर्घ संसार परिभ्रमण करे छे. जेम उपराउपर दारुना प्याला पीवाथी रवश थयेला जीव अनेक प्रकारनी कुचेष्टा कर्या करे छे तेम मोना प्रवल वेगमा तणाता जीवना महा माठा हाल थाय छे माटे उखना अर्थी जीवे मोह मदिराथी दूर रहेवा समताने धारी संकल्प वेकल्पोन शमावी देवा यत्न करवो युक्त छे. एम करवाथी सहज स्वभाविक निर्विकल्पः शान्त सुखनी प्राप्ति थेइ-शके छे. प्रवल मोहने पराधीन थयेलो माणी स्वममा पण एवं सुख पामी शकतो नथी.
६. आत्मालु स्वभाविकरूप तो स्फटिक रन जे निर्मल छे. परंतु पुनलना संबंधी जीव जड जेवो थइ तेमा मुंझाइ जाय छे.