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१२२ श्री जैनहितोपदेश भाग २ जोः
सर्वज्ञ-सर्वदर्शी भगवान् कहे. छे के कोइ कोइनु बगाडतुं के सुधारतुं नथी. वीजा तो केवळ निमित्त - मात्रज छे. पोतेज करेला कर्मानुसारे प्राणी दुःख सुखने पामे छे. तेमां अन्य उपर. अज्ञानपणे आरोप मूकवो मिथ्या छे. एम समनीने खरा पुरुषार्थवंत पुरुषो प्राप्त दुःखना मूळ कारणभूत कर्मने लक्षमा राखीने तेनेज निर्मूळ करवा प्रयत्न करे छे, अने तेज युक्त छे, छतां कायर अज्ञानी माणसो तेम करी शकता नथी. ___ पुरुषार्थवंत स्त्री. पुरुषज परमार्थभूत एवा मोक्ष मार्गने साधी. शके छे अने धर्म एन खरो पुरुषार्थ छे. एम समजी मोक्षार्थी जनोए. सर्वज्ञ भाषित धर्मर्नु यथाशक्ति आराधन करवा अवश उजमाळ रौq युक्त छे. • पूर्व पुन्ययोगे मनुष्य भवादिक शुभ सामग्रीने पाम.ने अने सद् गुर्वादिकनों विशिष्ट योग पामीने जे खहित साधी लेवानी उपेक्षा करे छे तेना पाछळथी केवा हाल थशे ते संबंधी श्री धनेश्वरमुरी' महारान.श्री शचुंजय महात्म्यमा आ प्रमाणे कहे छ:
धर्मेणाधिगतैश्वर्यो, धर्म मेंव निहन्ति यः ॥ कथं शुभायति भर्भावी स.स्वामिद्रोहपातकी ॥१॥
. धर्मना.प्रभावेन सर्व संपदाने पाम्या छतांजे नराधम धर्मनोज - लोप करें छे ते स्वामीद्रोही पापी भविष्यमा केवी-रीते मुखी- यह