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श्री जैनहितोपदेश भाग २ जो. सुभाध्यन छे. ते परहितने स्वहित-स्व कर्तव्य समनीने सुखे साधी
के छे. पंग जे स्वहित-स्व कर्तव्यनेज समजता नथी के सेवता नयी ते बापडा निर्धननी पेरे परहित तो भी रीतेज शाधी शके वारू ? '
___३९ पंच परमेष्टि महामंत्रनुं निरंतर स्मरण कर. :
_ 'अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, अने साधु ए पांच परमेष्टि छे.
जेमणे रागद्वेष अने मोहादिक अंतरंग शत्रुगणनो सर्वथा उच्छेद करी सर्वज्ञ सर्वदर्शी संपूर्ण सहजानंदि अने सर्वशक्तिमान थइ निदोष वचनवडे अनेक भव्य जीवोनो उद्धार कर्यो छे ते अरिहंत देव कहेवाय छे. जेमणे सर्व पाती अघाती कर्मोनो सर्वथा अंत करीने आत्माना स्वभाविक अनंत गुणोने प्रगट करी लोकना अग्र भागे स्थिति करी छे ते सिद्ध परमात्माना नामथी ओळखाय छे.
. पंचेंद्रिय निग्रह, नवविध ब्रह्मगुप्तिना धारक, च्यार. कषायथी मुक्त, पांच महाव्रत युक्त, पंचाचार पाळवाने समर्थ पांच समिति: अने त्रण गुप्तिना पालक. एम ३६ प्रधान गुणोवडे अलंकृत आचार्य भगवंत होय छे. “तेमनों वचन तीर्थकरना वचननी पेरे मानजीय थाय छे.