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चीन्द्रिय जीवमां, नौवा वैवं लाख ये जास। दुःख दोठा संसार सें, जौवा सुगणता अचरिज बात । जीवा. ॥ १२ ॥ जलचर थलचर खेचक, जीवा उरपुर भुजपुर जात । गोत ताप टषा सहो, जीवा दुःख सह्या दिन गत। जीवा० ॥ १३ ॥ इमि भ्रमन्ता नौबड़ो, नोवा माम्या नर भव मार । गर्भावाससे दुःख सया, जौवा ते नागो करतार । जीवा० ॥ १४ ॥ मस्तक तो हठो हुवे, नीवा ऊपर रहे बेहूं पाय। अांख्यां पाडौ मुष्टि बेई, नौवा इमि रह्या विठा घर माय । नावा० ॥ १५ ॥ वाप वार्य माता मधिर, जीवा इसड़ो लिया थे आहार। भूल गयो जन्म्या पछे, जौवा सेवी कर अविचार । जीवा० ॥ १६ ॥ ऊठ करोड़ सुई लाल करे, जीवा चांप रहे माय । अष्ट गुणों हुवे वेदना, जीवा गर्भावामा र माय । जीवा० ॥ १७ ॥ जन्मता हुवे करोड़ गुणी, जीवा सरता करोड़ों करोड़। जन्म मरणनी जीवने. जौवा नागाज्यो माटो खोड़। जीवा० ॥ १८ ॥ दश घनाय उपनो, नौवा इन्द्रिय होयौ होय । आयुषो घोका हुवे, जीवा धर्म किसी विधि होय । जौवा. . १६ कदाचित् नरभव पामियो. जीया उत्तम कुल शवतार। देही निरोगी पायने, नौवा यों ही खोयो जमवार । जीवा० ॥२०॥ ठग फ्रांसोगर चोरटा, जीवा