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________________ ए। तिणने दियां एकन्त पाप ए, भगवतीमें कयो जिन पाप ए ॥ २४ ॥ धर्म अधर्म दान दोय ए, पिण मिश्र म जाणो कोय ए। किमि जाणे मिथ्यात्वी जीव ए, मूलमें नहीं सम्यक्त्व नौंव ए ॥ २५ ॥ इमि आणीने करो विचार ए, पाठ अधर्म तणो परिहार ए। घणा सूत्रांनी साख ए, श्रीवौर गया है भाख ए ॥२६॥ ॥ चेतावनी ।। चेत चतुर नर कहै तनैं सत्गुरु, किस विधि तू ललचाना है। तन धन यौवन सर्व कुटुम्बी, एक दिवस तज जाना है। चेत० ॥ १॥ मोह मायाको बड़ी मालमें, जिसमें तू लोभाना है। काल पहेरी चोट पाकरी, ताक रह्यो नीशाना है। चेत० ॥ २॥ काल अनादिगे तूही रे भटक्यो, तो पण अन्त न पाना है। चार दिनांकी देख चान्दनी, जिसमे तू लोभाना है। चेत० ॥ ३ ॥ पूर्व भवरा पुण्य योग घी, नरकी देही पाना है। मास सवा नौ रहा गर्भमें, मन्यै मुख झूलाना है। चेत० ॥ ४ ॥ मल मूत्रको पचि कोघली, मांहें सांकड़ दीना है। रुधिर शक्र
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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