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________________ ( ८३ ) खोटी श्रद्धाने मूल मिथ्यात ए ॥ १५ ॥ गणिकादिक सेवे कुशौल ए, दान देवे करावे केल ए। यह तो प्रत्यक्ष खोटो काम ए, अधर्म दान के तियरो नाम ए ॥ १६ ॥ सूत्र अर्थ सिखाय ए, शुद्ध मार्ग आये ठाय ए । आपे सम्यक्त्व चारित एह ए, धर्म दान है आठमो तेह ए || १७ || बले मिले सुपाव आण ए, देवे निर्दूषण द्रवा जाण ए। यह तो दान मुक्तिनो माग ए, तिग दिया दारिद्रा जावें भाग ए ॥ १८ ॥ छः काय मारणरा त्याग ए, कोई पचखे प्राण विराग ए । अभय दान की जिनराय ए, धर्मं दानमें मिलियो बाय ए ॥ १६ ॥ सचित्तादिक द्रवा अनेक ए, उधारा जिमि देवे विशेष ए । पाछो. लेवारो मनमें ध्यान ए, नवमी काचन्ति दान ए ॥ २० ॥ लेणायतने देवें एह ए, हांती नेतादिक तेह ए । पाको लेवणरो एकान्त काम ए, कन्तिति दान के तिरो नाम ए ॥ २१ ॥ नवमे दशमे दानरौ चाल ए, धुरिया बोरेवालो ख्याल ए । ज्ञानी माने सावय मांय ए, तिगामें मिश्र किहांथो थाय ए ॥ २२ ॥ दश दानरी यह बिचार ए, संक्षेप को विस्तार ए । बौरनी पाज्ञामें दान एक ए, आज्ञा बाहिर दान अनेक ए ॥ २३ ॥ असंयति घर आवियो ए, निर्दूषण आहार वैरावियो 1 C
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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