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( ८२ ) कुटुम्ब तणी जतनां भणी ए ॥ ६ ॥ भयनो घाल्यो देवे भाम ए, भय दान छै तिणरी नाम ए। लेवै कुपात्र आय ए, तिणमें मिश्र किहांथौ थाय ए ॥ ७ ॥ खर्च करै मुवारै केड़ ए, जौमाड़े न्यातनै तेड़ ए। तीन बारा दिन अनुमान ए, चौथा कालुणी दान ए ॥८॥ वर्ष छः मासौ श्राद्ध ए, जिम तिम करै कुल मर्याद ए। सूवां पहिलौ खर्च करें काय ए, घणां नै तृप्त कर साय ए ॥ ६॥ आरम्भ कियां नहीं धर्म ए, जौमायां वन्धसी कर्म ए। बुद्धिवन्त करज्यो विचार ए, यांमें संवर निर्जग नही लिगार ए ॥ १० ॥ घणां गै लज्जावश थाय ए, सांकड़े पद्यां देवें ताय ए। देवै सचित्तादिक धन धान्य ए, यह तो पांचमा लज्जा दान ए ॥ ११ ॥ वह तो सावद्य दान साक्षात ए, वलौ दियो कुपात्र हाथ ए। तिगामैं कहै मिश्र धर्म ए, तिणयी निश्चय वंधसी कर्म ए ॥ १२॥ मुकलोवा पहगवणी मासाल ए, सगांने जाइ जोइ सम्भाल ए। यांने द्रव्य देवे यश काम ए, गर्व दान छै तिणरो नाम ए। १३ ॥ कीर्तिया वादी मल्ल ए, रावलिया रामत चल्ल ए। नट भीमा आदि विशेष ए, दान देवे त्यांने भनेक ए ॥ १४ ॥ उगा दानधौ वन्धे कर्म ए, मूर्ख कह मिथ धर्म ए। जैहनौ प्रत्यक्ष खोटी बात ए,