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________________ ( 99 ) सेवा कुगुरु कुदेव । भवा नोवा निग्रन्थ मार्ग नवि बोलख्यो, ताणौ कुलरोटेव । भ० ॥ २० ॥ भवा जीवा कपट करो धन मेलियो, चाड़ो चुगली खाय । भवा जौवा अभक्ष्य भक्ष्या जौवने हो, न पालो छ: काय । भव्य ० ॥ २१ ॥ * अन्तर ढाल * ( समझू नर विग्ला देशी ) केई लोग मिथ्यात्वा त्यांने नहीं ज्ञान, वले पूरो नहीं विज्ञानरे । समझू नर विरला । ( आंकड़ो ) ॥ आज दोय तीर्थङ्कररै झगड़ो लागो, तेता श्रावस्ती नगरौरे वागारे || स० ॥ १ ॥ ये दोनों माहामांहों बादमें बोले, एक एकरा पड़दा खोलेरे । स० ॥ वीर कहे म्हारो चेलो गोशालो, मोसूं मतकर झूठी झकालोरे । स० ॥ २ ॥ गोशालो कहे हूं थारो चेलो नाहीं, तैं कूड़ी कथौ लोकां मांहौरे । स० ॥ मैं तो साधपणेो थां आगे नहीं लौधा, मैंतो गुरु तोनै कदेय न कोधारे । स० ॥ ३ ॥ वौर कहे गोशालो तीर्थङ्कर नाहौं, }
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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