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छेदतो, दया न आणी लिगार । भ० ॥ ११॥ भवा जीवा वृक्ष तहां कूड़ सांभली, तिणरे वैसाणे छाय । भवा जीवा पान पडे तरवारसा ट क ट क होय जाय । भ० ॥ १२ ॥ भवा जीवा धन्धामे खूतो रहे, जूती घरी भार । भवा जौवा लोह तणे रथ जोतरे, धरती धूप अंगार । भ० ॥ १३ ॥ भवा जीवा परनी छाती दाहदे, चोख्या वित्त बहुवार। भवा जीवा धन खाधो कुट म्बिया, सहे एकलो भार। भ० ॥ १४ ॥ भवा नौवा हाथ पांव छेदन करे, नाखे अंग मरोर। भवा जौवा पुकार करे किण आगले, वहां नही किणरो नोर। भ० ॥ १५ ॥ भवा जौवा रङ्गरातो मातो फिरे परनारी प्रसङ्ग। भवा जीवा अग्निवर्णी लोह पुत्तली, चैढे तिगरे अड्ग । भ० ॥ १६ ॥ भवा जीवा पाप कर्म बोहला किया, कर कर मनरो जोश । भवा जीवा वोले परमाधामो देवता, किमो हमारी दोष । भ० ॥ १७ ॥ भवा जीवा क्षण जीतवा सुख बंछवा, सागर पल है मार। भवा नौवा विन भुगत्यां छूटे नहीं, अर्ज करै वारम्बार । भ० ॥ १८॥ भवा जीवा क्रोध मान माया लोभमे, छकियो वह्यो अन्याय । भवा जीवा सोध श्रावक वल्या, देतो धर्म अन्तराय । भ.। १६॥ भवा जीवा जीव ही धर्म जाणियो,