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जीवा मोह मिथ्यावरी नौंदमें सूतो काल अनन्त । भव्य जीवा जन्म मरण युग पूरियो, ज्ञान बिना नवि अन्त । भ० ॥ ३॥ भव्य जीवा सिकियो दूण संसारमें, ज्या भड़भूजारो भाड़। भव्य जीवा निग्रन्थ गुरु हेला दिये, अबतो आंख उघाड़। भ० ॥ ४ ॥ भव्य जीवा नरक तणो दुःख दोहिलो, सुणतां थड़हड़ थाय । भव्य जौवा पापकर्म एकठा किया, मार अनन्ती खाय भ० ॥ ५ ॥ भव्य जीवा चन्द्र सूर्यरो दर्शन नहीं, दौसे घोर अन्धार। भव्य जीवा न्हासणनै सैरी नहीं, जहां देखे जहां मार । भ० ॥ ६ ॥ भव्य जीवा अन्धी जीमण रातरो, करतां जीव मराय । भव्य जीवा भोभर विष्ठा जेहने, चांपे मंढा मांय । भ० ॥ ७॥ भव्य जीवा परमाधामी देवता, ज्यांरी पन्द्रह जात। भव्य जीवा मार देवे एकण जौवने, करै अनन्तौ घात । भ. ॥८॥ भव्य जीवा अर्थ अनर्थं धर्म कारणे, जल टोल्यो बिन ज्ञान। भव्य जौवा बाहिर शुचि बहुला किया, माहें मैल अज्ञान। भ० ॥६॥ भवा जीवा वैतरणी लोही राधनी, तिगरी तौखो नौर। भवा जीवा तिणने डुबाब हमें, छिन छिन हाय शरीर। भ० । १. भवा जौवा ढांढा ज्यों चरतो सदा.
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