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(०४ ) को होवे, जन्म मरण मिट जावे जौ। जि० ॥ १६ ॥ जान दर्शन करी मंसफी, दोनोंको समझाया। चेतनकी डिग्री करदौनी, कर्मों का कर्ज बतायाजी । जि. ॥ १७॥ असल कर्ज जो था कर्मों का, चेतन सेतो दिलाया। शुद्ध संयम जब करी जमानत, आगेका सूद मिटायानी। जि० ॥ १८॥ आश्रव छोड़ संबरको धागे, तपस्या से चित्त लाओ। जल्दी कर्ज पदाकर चेतन, सीधा मुक्तिको जाओजी । जि० ॥ १६ ॥ शुद्ध संयम जद करी जमानत, चेतन डिग्रौ पाई। फाल्गुन सुदि दशमी दिनमंगल, संवत् उगगोस अठाईनी। जि० ॥ २० ॥
करणी हो कीज्यो चित्त निर्मले की ढाल ।
भव्य जीवा आदि जिनेश्वर विनऊ, सतगुरु लागू पाय । भव्य जीवा मन वचन काया वश करो, छाण्डो चार कषाय। भव्य जीवा करणी हो कीज्यो चित्त निर्मले ॥ १ ॥ ( आंकड़ी ) भव्य जीवा मनुष्य नमारो दोहिलो, सूत्र मुगवो सार । भव्य जीवा साची श्रद्धा दोहिली, उत्तम कुल अवतार। ५० ॥ २॥ भव्य