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आयुष टूटोको सान्धो को नहि रे को ढाल |
प्रायुष टूटी को सान्धो को नहि रे, तिग कारण मति करो प्रसाद रे । जरा आयाने शरणो की नहिरे, हिंमा टालो ने धर्म सम्भालने ॥ ० ॥ २॥ कुटुम्ब कषौलो जारौ कारगेरे, मत करो कोई जाड़ा पाप । वोग्तयो परै सन्ध्या ग्सी रे, पूर्वभव घणो सहसो सन्ताप रे ॥ ० ॥ २ ॥ धनगडियो लहिनो रह्यो लोक में रे, जागे पोता लग टू बताय रे । नोभघौ नघौ भावे उतो बोलनो ग े, रही हूंल मनसांरी मन मांयर ॥ ० ॥३॥ ऊंचा चिगाया मन्दिर मालिया , दे दे नमों में अंडी नीव मे । इकदिन ऊभा छोड़ी घालसी र, मुखदुःख सहसी अपनो जीव रे || आ० ॥ ४ ॥ चक्रवर्ती हलधर राया केशवा रे, इमि बली इन्द्र सुगंगे नाथ उगमिने २ सगला आथस्यां र े, जोयनो का अवरन वाली बात े ॥ ० ॥ ५ ॥ जुगलियांरे तीन पत्योपसनो आयुपोरे लाम्बोज्यांगे तीनकोस कायरे । मल्पच पूरे ज्यांने दशजातनारे, बादल जिम गया विलाय र ॥ चा० ॥६॥ भगवन्त चौबीसवां श्रीवईमानजी रे, शक्रेन्द्र बोन्यो इसड़ी बात रे । स्वामी दोयबड़ी पाने वधारलोर, निमिष्ट भस्मग्रह टल
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