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जीरा गुगागांवतां ॥ कटे कसींगै कोड़। गुगा सुग्ध सुन्दर इस मणे । ज्याने बन्दुरे बेकरजोड़। अंगिक । १५ ॥
श्रावक शोभजी कृतश्रीमिर्गणिके गुणाकी ढाल ।
मोटो फंद इण जीवरे। कनका कासगी दोय । उलझ रह्यो निकल सकं नहौंरे। दर्शागे पड्योरे विछोय ॥ स्वामीजीरा दर्शण किग विध होय। १॥ कुटम्ब ऋद्धिस्यं राचियोर । अन्तराय सुजोय । मंगलीक दर्शण श्रीपूज्यनारे। मुगत पहुंचावे सोय
स्वा० ॥ २॥ संसाररो सुख दुःख भोगव्यारे । कर्म तगो वंध होय । दर्शगा नन्दण बन जिसोरे। कर्म चिन्ता देवे खोय । खा० ॥ ३॥ दान दया बोध वौजनेरे। हिरदै मे दौज्यो पोय । परदेशां गुगा विन्तरे। ज्यं मोनेसें रत्तन बड़ोय ॥ स्वा० ॥ ४। चोरी जारी आद योगगा तनोरे। इगा भव परसव दोय ॥ रबर दी पुरव भय तौर। श्रीपूज विना कुपा पुगोय । खा० ॥ ५ ॥ माचे मोतीज्यूं