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________________ बन्धु पिश म्हारे हुंता। एक उदरना भाय । औषध तो बहु विध किया। पिणं कारौ न लागी काय । श्रेणिक ६ ६ ॥ बहिनां पिण म्हारे हुंती। बड़ी छोटी ताय । बहुविध लूण उवारतौ पिण म्हारेरे सुख नहीं थाय ॥ श्रोणिक ॥ ७॥ गोरड़ी मन मोरड़ी। गारडी अबला घाल। देख बेदना म्हायरी न सकोरे मुझ बेदना बंटाय ॥ श्रेणिक ॥८॥ अांख्यां बहु आंसु पड़े । सिंच रहो मुझकाय ॥ खाण पाण विभूषा तजौ। पिण म्हारेरे समाधी न थाय । श्रेणिक पER प्रेम बिलुधी पदमणौ। मुझस्यं अलगी न थाय ॥ बहुविध बेदना मैं सही। बनिता रहौरे बिललाय ॥ श्रेणिक ॥ १० ॥ बहु राजबैद्य बुलाविया। किया अनेक उपाय । चन्दन लेप लगाविया। पिण म्हाररे समाधी न थाय ॥ श्रेणिक ॥ ११॥ जगमें कोडू कियारो नहौं। तब मे थयोर मनाथ ॥ वितरागीर धर्म बिना। नहीं कोरे मुगतिरो साथ ॥ श्रेणिक ॥ १२ ॥ बेदना जावे मांहरौ। तो लेऊ संजम भार ॥ इम चिन्तवतां बेदना गडू प्रभातेरे थयो अणगार । श्रेणिक ॥ १३ ॥ गुणा सुग राजा चिन्सवे।' धन एह अणगार ॥ राय श्रणिक समकित लौवौ। वान्दी पायोरे नगर मझार । श्रेणिक ॥ १४॥ अनाथी
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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