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( ६६ ) एकतार ॥ ठाणा अंग चौधे ठाणे श्रीजिन भाष्यो। दूस जाणौ समचित सहै संतरि ॥ शू० ॥ १३ ॥
उति सम्पूर्णम् ।
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॥ अथ अनाथी मुनिको स्तवन ॥
राय श्रेणिक बाड़ो गया। दौठो मुनि एकंत । रूप देखो अचरज घयो। राय पृछरे कुण वृतान्त । श्रेणिक राय छ रे अनाथी निग्रंथ । मेतो लोधोरे साधुजी रो पन्ध ॥ श्रेणिक ॥ १॥ कोसम्वी नगरी हुंती। पितामुज प्रवल धन ॥ पुत्र परवार भर पूरस्यूं तियरो हूं कुंवर रत्तन ॥ श्रेणिक ॥ २॥ एक दिवस मुन बेदना उपनी। मो स्यूं खमियन जाय । मात पिता या घणा। न सक्यारे मुज बेदना वंटाय । यिक ॥ ३॥ पिताजी म्हारे कारणे । खुरच्या वहोला दाम ॥ तो पिया वेदना गई नहीं। एहवोरे भघिर संसार । श्रेणिक ॥ ४ ॥ माता पिण हार कारणे। धरती टुःख भधाय । उपावतो लिया घया। पिण म्हरिरी मुख नहीं थाय । थेगिक ॥ ५ ॥